Friday, September 21, 2018

कहीं-कहीं से हर चेहरा तुम जैसा लगता है / Nida Fazli

कहीं-कहीं से हर चेहरा तुम जैसा लगता है
तुम को भूल न पायेंगे हम, ऐसा लगता है

ऐसा भी इक रंग है जो करता है बातें भी
जो भी इसको पहन ले वो अपना-सा लगता है

तुम क्या बिछड़े भूल गये रिश्तों की शराफ़त हम
जो भी मिलता है कुछ दिन ही अच्छा लगता है

अब भी यूँ मिलते हैं हमसे फूल चमेली के
जैसे इनसे अपना कोई रिश्ता लगता है

और तो सब कुछ ठीक है लेकिन कभी-कभी यूँ ही
चलता-फिरता शह्‌र अचानक तन्हा लगता है

Monday, September 3, 2018

हो काल गति से परे चिरंतन/ Dr. Kumar Vishwas


Dr. Kumar Vishwas


 काल गति से परे चिरंतन,
अभी यहाँ थे अभी यही हो।
कभी धरा पर कभी गगन में,
कभी कहाँ थे कभी कहीं हो।
तुम्हारी राधा को भान है तुम,
सकल चराचर में हो समाये।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
कि जिसमें होकर भी तुम नहीं हो।

न द्वारिका में मिले विराजे,
व्रज की गलियों में भी नहीं हो।
न ज्ञानियों के हो ध्यान में तुम,
अहम जड़े ज्ञान में भी नहीं हो।
तुम्हे ये जग ढूँढता है मोहन,
मगर इसे ये खबर नहीं है।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
अगर कहीं हो तो तुम यहीं हो।

Dr. Kumar Vishwas

Sunday, August 5, 2018

FULL- Koi Deewana Kehta Hai - Dr. Kumar Viswas

Dr. Kumar Vishwas

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Koi Deewana Kehta Hai

Koi deewana kehta hai, koi pagal samajhta hai,
Magar dharti ki bechaini ko bas badal samajhta hai
Main tujhse door kaisa hoon, tu mujhse door kaisi hai
Ye tera dil samajhta hai ya mera dil samajhta hai..

--
Mohbbat ek ehsaason ki pawan si kahani hai
Kabhi Kabira deewana tha, kabhi meera deewani hai
Yahan sab log kehte hain meri aankhon main aasoon hain
Jo tu samjhe to moti hain, jo na samjhe to paani hain

--
Bahut bikhra bahut toota thapede seh nahin paaya
Hawaaon ke isharon par magar main beh nahin paaya
Adhoora ansuna hi reh gaya yun pyar ka kissa
Kabhi tum sun nahin paaye, kabhi main keh nahin paaya

--

Samandar peer ka andar hai lekin ro nahi sakta
Ye ansoon pyar ka moti hai isko kho nahi sakta
Meri chahat ko dulhan tu bana lena magar sunle
Jo mera ho nahi paya wo tera ho nahi sakta

--
Bhramar koi kumudni par machal baitha to hungama
Hamare dil main koi khwaab pal baitha to hungama
Abhi tak doob ke sunte sab kissa mohhabat ka
Main kisse ko haqeekat main badal baitha to hungama
Dr. Kumar Viswas

Saturday, August 4, 2018

कल नुमाइश में फिर गीत मेरे बिके/ डॉ. कुमार विश्वास

कल नुमाइश में फिर गीत मेरे बिके
और मैं क़ीमतें ले के घर आ गया
कल सलीबों पे फिर प्रीत मेरी चढ़ी
मेरी आँखों पे स्वर्णिम धुआँ छा गया

कल तुम्हारी सु-सुधि में भरी गन्ध फिर
कल तुम्हारे लिए कुछ रचे छन्द फिर
मेरी रोती सिसकती सी आवाज़ में
लोग पाते रहे मौन आनंद फिर
कल तुम्हारे लिए आँख फिर नम हुई
कल अनजाने ही महफ़िल में, मैं छा गया

कल सजा रात आँसू का बाज़ार फिर
कल ग़ज़ल-गीत बनकर ढला प्यार फिर
कल सितारों-सी ऊँचाई पाकर भी मैं
ढूँढता ही रहा एक आधार फिर
कल मैं दुनिया को पाकर भी रोता रहा
आज खो कर स्वयं को तुम्हें पा गया

डॉ. कुमार विश्वास


Lyrics In English

Kal Numaish Me Fir Geet Mere Bike
Aur Main Keemtein Le Ke Ghar Aa Gaya
Kal Saleebon Pe Fir Preet Meri Chadhi
Meri Aankhon Pe Swarnim Dhuan Sha Gaya

Kal Tumhai Su-sugandh Mein Bhari Gandh Fir
Kal Tumhare Liye Kuch Ruch Shand Fir
Meri Roti Siskti Se Aawaz Mein
Log Paate Rahe Maon Aanand Fir
Kal Tumhare Liye Aankh Fir Nam Huyi
Kal Anjaane Hi Mehfil Me, Main Sha Gaya

Kal Saja Raat Aansoo Ka Bazaar Fir
Kal Ghazal Geet Bankar Dhala Pyaar Fir
Kal Sitaron Si Oonchai Paakar Bhi Main
Dhoondta Hi Raha Ek Aadhar Fir
Kal Main Duniya Ko Paakar Bhi Rota Raha
Aaj Kho Kar Swayam Ko tumhe Pa Gaya

Tuesday, July 24, 2018

कुर्बत भी नहीं दिल से उतर भी नहीं जाता / अहमद फ़राज़

Amhad Faraz
कुर्बत* भी नहीं दिल से उतर भी नहीं जाता
वो शख़्स कोई फ़ैसला कर भी नहीं जाता

आँखें हैं के खाली नहीं रहती हैं लहू से
और ज़ख्म-ए-जुदाई है के भर भी नहीं जाता

वो राहत-ए-जान* है इस दरबदरी में
ऐसा है के अब ध्यान उधर भी नहीं जाता

हम दोहरी अज़ीयत* के गिरफ़्तार मुसाफ़िर
पाऔं भी हैं शील शौक़-ए-सफ़र भी नहीं जाता

दिल को तेरी चाहत पर भरोसा भी बहुत है
और तुझसे बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता

पागल होते हो ‘फ़राज़’ उससे मिले क्या
इतनी सी ख़ुशी से कोई मर भी नहीं जाता

कुर्बत  =  मोहब्बत, प्यार
राहत-ए-जान  =  मन को प्रसन्न करने वाली
अज़ीयत  =  किसी को पहुंचाई जाने वाली पीड़ा, अत्याचार


अहमद फ़राज़

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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें / अहमद फ़राज़

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें

(हिजाबों = पर्दों)

ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें

(मुमकिन = सम्भव)

आज हम दार पे खेंचे गये जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें

(दार = सूली), (निसाबों = पाठ्यक्रमों, मूल, आधार)

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें

(ग़म-ए-दुनिया = सांसारिक दुख ), (ग़म-ए-यार = मित्र का दुख)

अब न वो मैं हूँ, न वो तू है, न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें

(माज़ी = अतीत्, भूतकाल), (सराबों = मृगतृष्णा)
-अहमद फ़राज़
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Friday, July 13, 2018

Ek shaksh ko chaha tha apnon ki tarah hamne / Parveen Shakir

Parveen Shakir

Ek Shakhs Ko Deakha Tha
Taron Ki Tarha Hamney

Ek Shaks Ko Chaaha Tha
Apnon Ki Tarha Hamney

Ek Shaks Ko Samjha Tha
Phoolon Ki Tarhaa Hamney

Wo Shaks Qayamat Tha
Kya Uski Karein Batain

Din Us Ky Liye Paida
Aur Uski He Thi Ratain

Kab Milta Kisi Se Tha
Ham Se Thi Mulaqatain

Rang Uska Shahaabi Tha
Zulfon Mein Thi Mehkarein

Aankhain Thi Ke Jaadu Tha
Palkain Thi K Talwarain

Dushman Bi Agar Dekhein
So Jaan Se Dil Harain

Kuch Tum Se Wo Milta Tha
Baton Mein Shahaabat Thi

Han Tum Sa Hi Lagtaa Tha
Shokhi Mein Sharaarat Main

Lagta Bhi Tumhe Sa Tha
Dastur-E-Mohabbat Main

Wo Shaks Hamain Aik Din

Apnon Ki Tarhaa Bhoolla
Taron Ki Tarha Doobba
Phoolon Ki Tarha Tootta

Phir Haath Na Aaya Woh
Hamney Bohat Dhoondha

Tum Kis Liye Chonkey Hom
Kab Zikar Tumhar Hai
Kab Tum Se Takaaza Hai
Kab Tum Se Shikaayat Hai

Ikk Taaza Hikayat Hai
Sun Lo Tou Inayat Hai

Ek Shaks Ko Chaaha Tha
Apnon Ki Tarha Hamney.

Ek Taza Hikayat Hai
Sun Lo To Inayat Ha


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Monday, July 9, 2018

हर धड़कन हैजानी थी हर ख़ामोशी तूफ़ानी थी/ Jaun Elia

हर धड़कन हैजानी थी हर ख़ामोशी तूफ़ानी थी
फिर भी मोहब्बत सिर्फ़ मुसलसल मिलने की आसानी थी

जिस दिन उस से बात हुई थी उस दिन भी बे-कैफ़ था मैं
जिस दिन उस का ख़त आया है उस दिन भी वीरानी थी

जब उस ने मुझ से ये कहा था इश्क़ रिफ़ाक़त ही तो नहीं
तब मैं ने हर शख़्स की सूरत मुश्किल से पहचानी थी

जिस दिन वो मिलने आई है उस दिन की रूदाद ये है
उस का बलाउज़ नारंजी था उस की सारी धानी थी

उलझन सी होने लगती थी मुझ को अक्सर और वो यूँ
मेरा मिज़ाज-ए-इश्क़ था शहरी उस की वफ़ा दहक़ानी थी

अब तो उस के बारे में तुम जो चाहो वो कह डालो
वो अंगड़ाई मेरे कमरे तक तो बड़ी रूहानी थी

नाम पे हम क़ुर्बान थे उस के लेकिन फिर ये तौर हुआ
उस को देख के रुक जाना भी सब से बड़ी क़ुर्बानी थी

मुझ से बिछड़ कर भी वो लड़की कितनी ख़ुश ख़ुश रहती है
उस लड़की ने मुझ से बिछड़ कर मर जाने की ठानी थी

इश्क़ की हालत कुछ भी नहीं थी बात बढ़ाने का फ़न था
लम्हे ला-फ़ानी ठहरे थे क़तरों की तुग़्यानी थी

जिस को ख़ुद मैं ने भी अपनी रूह का इरफ़ाँ समझा था
वो तो शायद मेरे प्यासे होंटों की शैतानी थी

था दरबार-ए-कलाँ भी उस का नौबत-ख़ाना उस का था
थी मेरे दिल की जो रानी अमरोहे की रानी थी
#जौन_एलिया

Saturday, July 7, 2018

गुलों के तन पे बैठी तितलियाँ अच्छी नहीं लगती / Hashim Firozabady

गुलों के तन पे बैठी तितलियाँ अच्छी नहीं लगती ,
            सुकून ए दिल पे गिरती बिजलियाँ अच्छी नहीं लगती। 


             यकीं मानो वो जिस दिन से मेरे कॉलेज में आई हैं ,
             मुझे कॉलेज की अपने छुट्टियां अच्छी नहीं लगती।।     

Thursday, July 5, 2018

बच्चों के क्या नाम रखे हैं.......?/ Dr. Kumar Vishwas

भाषण देने कभी गया था , मथुरा के कोई कॉलिज में ,
रस्ते भर खाने के पैसे बचा लिए थे, और ख़रीदे थे जो मैंने ,
जन्मभूमि वाले मंदिर से ,मुझे देख जो मुस्काते थे ,
नटखट शोख़ इशारे कर के , तुम्हे देख जो शरमाते थे ,
सहज रास आखोँ में भर के,आले में चुपचाप अधर पर वेणु टिकाये ,
अभी तलक़ क्या वो छलिया घनश्याम रखे हैं....?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं.......?


आँसू की बारिश में भीगे ,ठोड़ी के जिस तिल को मैंने ,
विदा-समय पर चूम लिया था ,और कहा था 'मन मत हारो ' ,
तुम से अनगाया गाया है , तुमको खो कर पर भी पाया है ,
चाहे मैं दुनिया भर घूमूँ , धरती भोगूँ , अम्बर चूमूँ ,
इस तिल को दर्पण में जब भी कभी देखना, यही समझना ,
ठोड़ी पर यह तिल थोड़ी है ,जग-भर की नज़रों से ओझल ,
मेरी भटकन रखी हुई है ,मेरे चारों धाम रखे हैं ,

सच बतलाओ नए प्रसाधन के लेपन में, चेहरे की चमकीली परतों ,
के ऊपर भी जिसमे तुमको 'मैं' दिखता था , गोरे मुखड़े वाली,
चाँदी की थाली में अबतक भी क्या मेरे शालिग्राम रखे हैं ?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं.......?


सरस्वती पूजन वाले दिन , मेरा जन्म-दिवस भी है जो ,
बाँधी थी जो रंग-बसन्ती वाली साड़ी ,फाल ढूंढ़ने को जिस का मैं ,
तीन-तीन बाज़ारों तक़ खुद ,दौड़-दौड़ कर फ़ैल गया था , 
बी. एड. की गाईड हो या हो लव-स्टोरी की वी.सी.डी. ,
मौसी के घर तक़ जाने को ,सीट घेरनी हो जयपुर की बस में चाहे ,
ऐसे सारे गैर-ज़रूरी काम ,ज़रूरी हो जाते थे, एक तुम्हारे कहने भर से ,
अब जिस के संग निभा रही हो ,हँस-हँस कर अनमोल जवानी ,
उस अनजाने उस अनदेखे ,भाग्यबली के हित भी तुमने ,
ऐसे ही क्या गैर-ज़रूरी काम रखे हैं ...?

बच्चों के क्या नाम रखे हैं...….?

Wednesday, July 4, 2018

Kabhi jo ham nahi honge kaho kisko bataoge/ Wasi Shah

Kabhi Jo Hum Nahi Honge
Kaho Kisko Batao Gy
Wo Apni Uljhanay Sari 
Wo Bechaini Mei Doobay Pal
Wo Ankhon Mei Chupay Ansu
Kisay Phir Tum Dikhao Gy 
Kabhi Jo Hum Nahi Hon Ge
Bohat Baychain Ho Gy Tum
Bohat Tanha Reh Jao Gy
Abhi B Tum Nahi Samjhy

Hamari Ann Kahi Batein 
Magar Jab Yaad AayengyG

Bohat Tumko Rulain Gy
Bohat Chaho Gy lekin tum
Hamein Na Dhound Pao Gy

Kabhi Jo Hum Nahi Hon Ge
Kaho kisko bataoge.....???

Tuesday, July 3, 2018

Dr. Kumar Vishwas Best Poems

किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है
लो हमने देख ली दुनिया जो इतनी ख़ूबसूरत है
ज़माना अपनी समझे पर मुझे अपनी खबर ये है
तुम्हें मेरी जरूरत है मुझे तेरी जरूरत है

पुकारे आँख में चढ़कर तो खू को खू समझता है
अँधेरा किसको को कहते हैं ये बस जुगनू समझता है
हमें तो चाँद तारों में भी तेरा रूप दिखता है
मोहब्बत में नुमाइश को अदाएं तू समझता है

पनाहों में जो आया हो तो उस पर अधिकार क्या मेरा
जो दिल हार हो उस पे फिर अधिकार क्या मेरा
मोहब्बत का मज़ा तो डूबने की कसमकस में हैं
जो हो मालूम गहराई तो दरिया पार क्या करना

बदलने को इन आंखों के मंज़र कम नहीं बदले
तुम्हारी याद के मौसम हमरे गम नही बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी, तब ये जानोगी
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदल

सारे गुलशन में तुझे ढूंढ के मैं नाकारा
अब हर एक फूल को ख़ुद अपना पता देता हूँ
कितने चेहरों में झलक तेरी नजर आती है
कितनी आँखों को मैं बेबात जगा देता हूँ

एक दो दिन मे वो इक़रार कहाँ आएगा
हर सुबह एक ही अख़बार कहाँ आएगा
आज बाँधा है जो इनमें, तो बहल
रोज़ इन बाँहों का त्यौहार कहाँ आएगा

Monday, July 2, 2018

मैने सोचा था तुम्हे फोन करूंगा एक दिन / Unknown

मैने सोचा था तुम्हे फोन करूंगा एक दिन

पूछना था कि तबीय्यत तुम्हारी कैसी है

ये नई वाली मोहब्बत तुम्हारी कैसी है
रात को जागते रहते हो कि सो जाते हो
इक नई ख़्वाब के आग़ोश में खो जाते हो

अब भी कॉन्टेक्ट में है नाम कि मिटा डाला

तोहफे रख्खे हैं अभी या उन्हें जला डाला

दिन में सौ बार मुझे फोन किया करती थी

फोन उठाने में जो देरी हो लड़ा करती थी

चैट ईमो पे दबे पांव चली आती थी

बात ही बात में ये रात गुज़र जाती थी

फोन में बारहा पैसा भी भरा देता था

आनलाईन तुम्हे शापिंग भी करा देता था

माह में गिफ्ट कोई तुम को भा ही जाता था

बिल मेरे नाम का हर वक़्त चला आता था

अब तो टिक भी यहाँ रंगीन तक नही होता

कोई मैसेज भी मेरा सीन तक नही होता

मैने सोचा था कि तुम तो बड़ी पागल निकली

आज एहसास हुआ तुम बड़ी डिजिटल निकली

एटीएम जैसे यहाँ हैक हो गया शायद

ईश्क़ मेरा भी यहाँ बैक हो गया शायद

नोटबंदी का यहाँ जैसे फायदा ही नहीं

आज के दौर की चाहत में ज़ायक़ा ही नहीं

एक दूजे के लिए छल नहीं करने वाला

प्यार अपना कभी डिजिटल नहीं करने वाला

तुम से मिलने का इरादा ही यहाँ छोड़ दिया
फोन को अपने उठाया उठा के तोड़ दिया

मैने सोचा था तुम्हे फोन करूंगा एक दिन

Saturday, June 30, 2018

मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा / वसीम बरेलवी

मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा

ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा

हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता वसीम
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा

Friday, June 29, 2018

ज़िन्दगी यूँ थी कि जीने का बहाना तू था /अहमद फ़राज़

ज़िन्दगी यूँ थी कि जीने का बहाना तू था
हम फ़क़त जेबे-हिकायत थे फ़साना तू था

हमने जिस जिस को भी चाहा तेरे हिज्राँ में वो लोग
आते जाते हुए मौसम थे ज़माना तू था

अबके कुछ दिल ही ना माना क पलट कर आते
वरना हम दरबदरों का तो ठिकाना तू था

यार अगियार कि हाथों में कमानें थी फ़राज़
और सब देख रहे थे कि निशाना तू था

Thursday, June 28, 2018

इक बार कहो तुम मेरी हो / इब्ने इंशा


हम घूम चुके बस्ती-बन में
इक आस का फाँस लिए मन में
कोई साजन हो, कोई प्यारा हो
कोई दीपक हो, कोई तारा हो
जब जीवन-रात अंधेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।

जब सावन-बादल छाए हों
जब फागुन फूल खिलाए हों
जब चंदा रूप लुटाता हो
जब सूरज धूप नहाता हो
या शाम ने बस्ती घेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।

हाँ दिल का दामन फैला है
क्यों गोरी का दिल मैला है
हम कब तक पीत के धोखे में
तुम कब तक दूर झरोखे में
कब दीद से दिल की सेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।

क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का
ये काज नहीं बंजारे का
सब सोना रूपा ले जाए
सब दुनिया, दुनिया ले जाए
तुम एक मुझे बहुतेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।

दीद=दर्शन 

सेरी=तॄप्ति 

सूद-ख़सारे=लाभ-हानि


Wednesday, June 27, 2018

तुम्हारा फ़ोन आया है / कुमार विश्वास

अजब सी ऊब शामिल हो गयी है रोज़ जीने में
पलों को दिन में, दिन को काट कर जीना महीने में
महज मायूसियाँ जगती हैं अब कैसी भी आहट पर
हज़ारों उलझनों के घोंसले लटके हैं चैखट पर
अचानक सब की सब ये चुप्पियाँ इक साथ पिघली हैं
उम्मीदें सब सिमट कर हाथ बन जाने को मचली हैं
मेरे कमरे के सन्नाटे ने अंगड़ाई सी तोड़ी है
मेरी ख़ामोशियों ने एक नग़मा गुनगुनाया है
तुम्हारा फ़ोन आया है, तुम्हारा फ़ोन आया है

सती का चैतरा दिख जाए जैसे रूप-बाड़ी में
कि जैसे छठ के मौके पर जगह मिल जाए गाड़ी में
मेरी आवाज़ से जागे तुम्हारे बाम-ओ-दर जैसे
ये नामुमकिन सी हसरत है, ख़्याली है, मगर जैसे
बड़ी नाकामियों के बाद हिम्मत की लहर जैसे
बड़ी बेचैनियों के बाद राहत का पहर जैसे
बड़ी ग़ुमनामियों के बाद शोहरत की मेहर जैसे
सुबह और शाम को साधे हुए इक दोपहर जैसे
बड़े उन्वान को बाँधे हुए छोटी बहर जैसे
नई दुल्हन के शरमाते हुए शाम-ओ-सहर जैसे
हथेली पर रची मेहँदी अचानक मुस्कुराई है
मेरी आँखों में आँसू का सितारा जगमगाया है
तुम्हारा फ़ोन आया है, तुम्हारा फ़ोन आया है

जुस्तजू जिस की थी / शहरयार


जुस्तजू जिस की थी उस को तो न पाया हमने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने

तुझको रुसवा न किया ख़ुद भी पशेमाँ न हुये
इश्क़ की रस्म को इस तरह निभाया हमने

कब मिली थी कहाँ बिछड़ी थी हमें याद नहीं
ज़िन्दगी तुझको तो बस ख़्वाब में देखा हमने

Tuesday, June 26, 2018

कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तेरा ख़याल भी / Parveen shakir


कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तेरा ख़याल भी 

दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी 


बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की 
चाँद भी ऐन चेत का उस पे तेरा जमाल भी 

सब से नज़र बचा के वो मुझ को ऐसे देखते 
एक दफ़ा तो रुक गई गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी 

दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तराश के देख लो 
शीशागरान-ए-शहर के हाथ का ये कमाल भी 

उस को न पा सके थे जब दिल का अजीब हाल था 
अब जो पलट के देखिये बात थी कुछ मुहाल भी 

मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर 
हाथ दुआ से यूँ गिरा भूल गया सवाल भी 

शाम की नासमझ हवा पूछ रही है इक पता 
मौज-ए-हवा-ए-कू-ए-यार कुछ तो मेरा ख़याल भी 

उस के ही बाज़ूओं में और उस को ही सोचते रहे 
जिस्म की ख़्वाहिशों पे थे रूह के और जाल भी

महक उठा है आंगन इस खबर से / जॉन एलिया

महक उठा है आँगन इस ख़बर से
वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से 

जुदाई ने उसे देखा सर-ए-बाम
दरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसे 

मैं इस दीवार पर चढ़ तो गया था 
उतारे कौन अब दीवार पर से 

गिला है एक गली से शहर-ए-दिल की 
मैं लड़ता फिर रहा हूँ शहर भर से 

उसे देखे ज़माने भर का ये चाँद
हमारी चाँदनी छाए तो तरसे 

मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान 
कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से

Monday, June 25, 2018

हमेशा देर कर देता हूँ मैं / मुनीर नियाज़ी मुनीर नियाज़ी


हमेशा देर कर देता हूँ मैं 
ज़रूरी बात कहनी हो 
कोई वादा निभाना हो 
उसे आवाज़ देनी हो 
उसे वापस बुलाना हो 
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

मदद करनी हो उसकी 
यार का धाढ़स बंधाना हो 
बहुत देरीनापुराने रास्तों पर 
किसी से मिलने जाना हो 
हमेशा देर कर देता हूँ मैं 

बदलते मौसमों की सैर में 
दिल को लगाना हो 
किसी को याद रखना हो 
किसी को भूल जाना हो 
हमेशा देर कर देता हूँ मैं 

किसी को मौत से पहले 
किसी ग़म से बचाना हो 
हक़ीक़त और थी कुछ 
उस को जा के ये बताना हो 
हमेशा देर कर देता हूँ मैं 

बदलने को इन आंखों के मंज़र कम नहीं बदले / Dr. Kumar Vishwas

बदलने को इन आंखों के मंज़र कम नहीं बदले
तुम्हारी याद के मौसम हमरे गम नही बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी, तब ये जानोगी
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदल

किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है / Dr. Kumar Vishwas

किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है
लो हमने देख ली दुनिया जो इतनी ख़ूबसूरत है
ज़माना अपनी समझे पर मुझे अपनी खबर ये है
तुम्हें मेरी जरूरत है मुझे तेरी जरूरत है

Kal Hamesha ki tarah us nay kaha yeh phone par || Last Call || Wasi Shah

Last Call By Wasi Shah Kal Hamesha ki tarah us nay kaha yeh phone par ... Main bohot masroof hoon, mujh ko bohot sey kaam hain ... I...