Monday, September 3, 2018

हो काल गति से परे चिरंतन/ Dr. Kumar Vishwas


Dr. Kumar Vishwas


 काल गति से परे चिरंतन,
अभी यहाँ थे अभी यही हो।
कभी धरा पर कभी गगन में,
कभी कहाँ थे कभी कहीं हो।
तुम्हारी राधा को भान है तुम,
सकल चराचर में हो समाये।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
कि जिसमें होकर भी तुम नहीं हो।

न द्वारिका में मिले विराजे,
व्रज की गलियों में भी नहीं हो।
न ज्ञानियों के हो ध्यान में तुम,
अहम जड़े ज्ञान में भी नहीं हो।
तुम्हे ये जग ढूँढता है मोहन,
मगर इसे ये खबर नहीं है।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
अगर कहीं हो तो तुम यहीं हो।

Dr. Kumar Vishwas

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