किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है
लो हमने देख ली दुनिया जो इतनी ख़ूबसूरत है
ज़माना अपनी समझे पर मुझे अपनी खबर ये है
तुम्हें मेरी जरूरत है मुझे तेरी जरूरत है
पुकारे आँख में चढ़कर तो खू को खू समझता है
अँधेरा किसको को कहते हैं ये बस जुगनू समझता है
हमें तो चाँद तारों में भी तेरा रूप दिखता है
मोहब्बत में नुमाइश को अदाएं तू समझता है
पनाहों में जो आया हो तो उस पर अधिकार क्या मेरा
जो दिल हार हो उस पे फिर अधिकार क्या मेरा
मोहब्बत का मज़ा तो डूबने की कसमकस में हैं
जो हो मालूम गहराई तो दरिया पार क्या करना
बदलने को इन आंखों के मंज़र कम नहीं बदले
तुम्हारी याद के मौसम हमरे गम नही बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी, तब ये जानोगी
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदल
सारे गुलशन में तुझे ढूंढ के मैं नाकारा
अब हर एक फूल को ख़ुद अपना पता देता हूँ
कितने चेहरों में झलक तेरी नजर आती है
कितनी आँखों को मैं बेबात जगा देता हूँ
एक दो दिन मे वो इक़रार कहाँ आएगा
हर सुबह एक ही अख़बार कहाँ आएगा
आज बाँधा है जो इनमें, तो बहल
रोज़ इन बाँहों का त्यौहार कहाँ आएगा
लो हमने देख ली दुनिया जो इतनी ख़ूबसूरत है
ज़माना अपनी समझे पर मुझे अपनी खबर ये है
तुम्हें मेरी जरूरत है मुझे तेरी जरूरत है
अँधेरा किसको को कहते हैं ये बस जुगनू समझता है
हमें तो चाँद तारों में भी तेरा रूप दिखता है
मोहब्बत में नुमाइश को अदाएं तू समझता है
जो दिल हार हो उस पे फिर अधिकार क्या मेरा
मोहब्बत का मज़ा तो डूबने की कसमकस में हैं
जो हो मालूम गहराई तो दरिया पार क्या करना
तुम्हारी याद के मौसम हमरे गम नही बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी, तब ये जानोगी
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदल
अब हर एक फूल को ख़ुद अपना पता देता हूँ
कितने चेहरों में झलक तेरी नजर आती है
कितनी आँखों को मैं बेबात जगा देता हूँ
हर सुबह एक ही अख़बार कहाँ आएगा
आज बाँधा है जो इनमें, तो बहल
रोज़ इन बाँहों का त्यौहार कहाँ आएगा
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