जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें
(हिजाबों = पर्दों)
ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
(मुमकिन = सम्भव)
आज हम दार पे खेंचे गये जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
(दार = सूली), (निसाबों = पाठ्यक्रमों, मूल, आधार)
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
(ग़म-ए-दुनिया = सांसारिक दुख ), (ग़म-ए-यार = मित्र का दुख)
अब न वो मैं हूँ, न वो तू है, न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
(माज़ी = अतीत्, भूतकाल), (सराबों = मृगतृष्णा)
तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें
(हिजाबों = पर्दों)
ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
(मुमकिन = सम्भव)
आज हम दार पे खेंचे गये जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
(दार = सूली), (निसाबों = पाठ्यक्रमों, मूल, आधार)
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
(ग़म-ए-दुनिया = सांसारिक दुख ), (ग़म-ए-यार = मित्र का दुख)
अब न वो मैं हूँ, न वो तू है, न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
(माज़ी = अतीत्, भूतकाल), (सराबों = मृगतृष्णा)
-अहमद फ़राज़
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