Tuesday, June 26, 2018

कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तेरा ख़याल भी / Parveen shakir


कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तेरा ख़याल भी 

दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी 


बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की 
चाँद भी ऐन चेत का उस पे तेरा जमाल भी 

सब से नज़र बचा के वो मुझ को ऐसे देखते 
एक दफ़ा तो रुक गई गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी 

दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तराश के देख लो 
शीशागरान-ए-शहर के हाथ का ये कमाल भी 

उस को न पा सके थे जब दिल का अजीब हाल था 
अब जो पलट के देखिये बात थी कुछ मुहाल भी 

मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर 
हाथ दुआ से यूँ गिरा भूल गया सवाल भी 

शाम की नासमझ हवा पूछ रही है इक पता 
मौज-ए-हवा-ए-कू-ए-यार कुछ तो मेरा ख़याल भी 

उस के ही बाज़ूओं में और उस को ही सोचते रहे 
जिस्म की ख़्वाहिशों पे थे रूह के और जाल भी

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