Tuesday, July 24, 2018

कुर्बत भी नहीं दिल से उतर भी नहीं जाता / अहमद फ़राज़

Amhad Faraz
कुर्बत* भी नहीं दिल से उतर भी नहीं जाता
वो शख़्स कोई फ़ैसला कर भी नहीं जाता

आँखें हैं के खाली नहीं रहती हैं लहू से
और ज़ख्म-ए-जुदाई है के भर भी नहीं जाता

वो राहत-ए-जान* है इस दरबदरी में
ऐसा है के अब ध्यान उधर भी नहीं जाता

हम दोहरी अज़ीयत* के गिरफ़्तार मुसाफ़िर
पाऔं भी हैं शील शौक़-ए-सफ़र भी नहीं जाता

दिल को तेरी चाहत पर भरोसा भी बहुत है
और तुझसे बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता

पागल होते हो ‘फ़राज़’ उससे मिले क्या
इतनी सी ख़ुशी से कोई मर भी नहीं जाता

कुर्बत  =  मोहब्बत, प्यार
राहत-ए-जान  =  मन को प्रसन्न करने वाली
अज़ीयत  =  किसी को पहुंचाई जाने वाली पीड़ा, अत्याचार


अहमद फ़राज़

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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें / अहमद फ़राज़

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें

(हिजाबों = पर्दों)

ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें

(मुमकिन = सम्भव)

आज हम दार पे खेंचे गये जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें

(दार = सूली), (निसाबों = पाठ्यक्रमों, मूल, आधार)

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें

(ग़म-ए-दुनिया = सांसारिक दुख ), (ग़म-ए-यार = मित्र का दुख)

अब न वो मैं हूँ, न वो तू है, न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें

(माज़ी = अतीत्, भूतकाल), (सराबों = मृगतृष्णा)
-अहमद फ़राज़
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Friday, July 13, 2018

Ek shaksh ko chaha tha apnon ki tarah hamne / Parveen Shakir

Parveen Shakir

Ek Shakhs Ko Deakha Tha
Taron Ki Tarha Hamney

Ek Shaks Ko Chaaha Tha
Apnon Ki Tarha Hamney

Ek Shaks Ko Samjha Tha
Phoolon Ki Tarhaa Hamney

Wo Shaks Qayamat Tha
Kya Uski Karein Batain

Din Us Ky Liye Paida
Aur Uski He Thi Ratain

Kab Milta Kisi Se Tha
Ham Se Thi Mulaqatain

Rang Uska Shahaabi Tha
Zulfon Mein Thi Mehkarein

Aankhain Thi Ke Jaadu Tha
Palkain Thi K Talwarain

Dushman Bi Agar Dekhein
So Jaan Se Dil Harain

Kuch Tum Se Wo Milta Tha
Baton Mein Shahaabat Thi

Han Tum Sa Hi Lagtaa Tha
Shokhi Mein Sharaarat Main

Lagta Bhi Tumhe Sa Tha
Dastur-E-Mohabbat Main

Wo Shaks Hamain Aik Din

Apnon Ki Tarhaa Bhoolla
Taron Ki Tarha Doobba
Phoolon Ki Tarha Tootta

Phir Haath Na Aaya Woh
Hamney Bohat Dhoondha

Tum Kis Liye Chonkey Hom
Kab Zikar Tumhar Hai
Kab Tum Se Takaaza Hai
Kab Tum Se Shikaayat Hai

Ikk Taaza Hikayat Hai
Sun Lo Tou Inayat Hai

Ek Shaks Ko Chaaha Tha
Apnon Ki Tarha Hamney.

Ek Taza Hikayat Hai
Sun Lo To Inayat Ha


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Monday, July 9, 2018

हर धड़कन हैजानी थी हर ख़ामोशी तूफ़ानी थी/ Jaun Elia

हर धड़कन हैजानी थी हर ख़ामोशी तूफ़ानी थी
फिर भी मोहब्बत सिर्फ़ मुसलसल मिलने की आसानी थी

जिस दिन उस से बात हुई थी उस दिन भी बे-कैफ़ था मैं
जिस दिन उस का ख़त आया है उस दिन भी वीरानी थी

जब उस ने मुझ से ये कहा था इश्क़ रिफ़ाक़त ही तो नहीं
तब मैं ने हर शख़्स की सूरत मुश्किल से पहचानी थी

जिस दिन वो मिलने आई है उस दिन की रूदाद ये है
उस का बलाउज़ नारंजी था उस की सारी धानी थी

उलझन सी होने लगती थी मुझ को अक्सर और वो यूँ
मेरा मिज़ाज-ए-इश्क़ था शहरी उस की वफ़ा दहक़ानी थी

अब तो उस के बारे में तुम जो चाहो वो कह डालो
वो अंगड़ाई मेरे कमरे तक तो बड़ी रूहानी थी

नाम पे हम क़ुर्बान थे उस के लेकिन फिर ये तौर हुआ
उस को देख के रुक जाना भी सब से बड़ी क़ुर्बानी थी

मुझ से बिछड़ कर भी वो लड़की कितनी ख़ुश ख़ुश रहती है
उस लड़की ने मुझ से बिछड़ कर मर जाने की ठानी थी

इश्क़ की हालत कुछ भी नहीं थी बात बढ़ाने का फ़न था
लम्हे ला-फ़ानी ठहरे थे क़तरों की तुग़्यानी थी

जिस को ख़ुद मैं ने भी अपनी रूह का इरफ़ाँ समझा था
वो तो शायद मेरे प्यासे होंटों की शैतानी थी

था दरबार-ए-कलाँ भी उस का नौबत-ख़ाना उस का था
थी मेरे दिल की जो रानी अमरोहे की रानी थी
#जौन_एलिया

Saturday, July 7, 2018

गुलों के तन पे बैठी तितलियाँ अच्छी नहीं लगती / Hashim Firozabady

गुलों के तन पे बैठी तितलियाँ अच्छी नहीं लगती ,
            सुकून ए दिल पे गिरती बिजलियाँ अच्छी नहीं लगती। 


             यकीं मानो वो जिस दिन से मेरे कॉलेज में आई हैं ,
             मुझे कॉलेज की अपने छुट्टियां अच्छी नहीं लगती।।     

Thursday, July 5, 2018

बच्चों के क्या नाम रखे हैं.......?/ Dr. Kumar Vishwas

भाषण देने कभी गया था , मथुरा के कोई कॉलिज में ,
रस्ते भर खाने के पैसे बचा लिए थे, और ख़रीदे थे जो मैंने ,
जन्मभूमि वाले मंदिर से ,मुझे देख जो मुस्काते थे ,
नटखट शोख़ इशारे कर के , तुम्हे देख जो शरमाते थे ,
सहज रास आखोँ में भर के,आले में चुपचाप अधर पर वेणु टिकाये ,
अभी तलक़ क्या वो छलिया घनश्याम रखे हैं....?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं.......?


आँसू की बारिश में भीगे ,ठोड़ी के जिस तिल को मैंने ,
विदा-समय पर चूम लिया था ,और कहा था 'मन मत हारो ' ,
तुम से अनगाया गाया है , तुमको खो कर पर भी पाया है ,
चाहे मैं दुनिया भर घूमूँ , धरती भोगूँ , अम्बर चूमूँ ,
इस तिल को दर्पण में जब भी कभी देखना, यही समझना ,
ठोड़ी पर यह तिल थोड़ी है ,जग-भर की नज़रों से ओझल ,
मेरी भटकन रखी हुई है ,मेरे चारों धाम रखे हैं ,

सच बतलाओ नए प्रसाधन के लेपन में, चेहरे की चमकीली परतों ,
के ऊपर भी जिसमे तुमको 'मैं' दिखता था , गोरे मुखड़े वाली,
चाँदी की थाली में अबतक भी क्या मेरे शालिग्राम रखे हैं ?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं.......?


सरस्वती पूजन वाले दिन , मेरा जन्म-दिवस भी है जो ,
बाँधी थी जो रंग-बसन्ती वाली साड़ी ,फाल ढूंढ़ने को जिस का मैं ,
तीन-तीन बाज़ारों तक़ खुद ,दौड़-दौड़ कर फ़ैल गया था , 
बी. एड. की गाईड हो या हो लव-स्टोरी की वी.सी.डी. ,
मौसी के घर तक़ जाने को ,सीट घेरनी हो जयपुर की बस में चाहे ,
ऐसे सारे गैर-ज़रूरी काम ,ज़रूरी हो जाते थे, एक तुम्हारे कहने भर से ,
अब जिस के संग निभा रही हो ,हँस-हँस कर अनमोल जवानी ,
उस अनजाने उस अनदेखे ,भाग्यबली के हित भी तुमने ,
ऐसे ही क्या गैर-ज़रूरी काम रखे हैं ...?

बच्चों के क्या नाम रखे हैं...….?

Wednesday, July 4, 2018

Kabhi jo ham nahi honge kaho kisko bataoge/ Wasi Shah

Kabhi Jo Hum Nahi Honge
Kaho Kisko Batao Gy
Wo Apni Uljhanay Sari 
Wo Bechaini Mei Doobay Pal
Wo Ankhon Mei Chupay Ansu
Kisay Phir Tum Dikhao Gy 
Kabhi Jo Hum Nahi Hon Ge
Bohat Baychain Ho Gy Tum
Bohat Tanha Reh Jao Gy
Abhi B Tum Nahi Samjhy

Hamari Ann Kahi Batein 
Magar Jab Yaad AayengyG

Bohat Tumko Rulain Gy
Bohat Chaho Gy lekin tum
Hamein Na Dhound Pao Gy

Kabhi Jo Hum Nahi Hon Ge
Kaho kisko bataoge.....???

Tuesday, July 3, 2018

Dr. Kumar Vishwas Best Poems

किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है
लो हमने देख ली दुनिया जो इतनी ख़ूबसूरत है
ज़माना अपनी समझे पर मुझे अपनी खबर ये है
तुम्हें मेरी जरूरत है मुझे तेरी जरूरत है

पुकारे आँख में चढ़कर तो खू को खू समझता है
अँधेरा किसको को कहते हैं ये बस जुगनू समझता है
हमें तो चाँद तारों में भी तेरा रूप दिखता है
मोहब्बत में नुमाइश को अदाएं तू समझता है

पनाहों में जो आया हो तो उस पर अधिकार क्या मेरा
जो दिल हार हो उस पे फिर अधिकार क्या मेरा
मोहब्बत का मज़ा तो डूबने की कसमकस में हैं
जो हो मालूम गहराई तो दरिया पार क्या करना

बदलने को इन आंखों के मंज़र कम नहीं बदले
तुम्हारी याद के मौसम हमरे गम नही बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी, तब ये जानोगी
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदल

सारे गुलशन में तुझे ढूंढ के मैं नाकारा
अब हर एक फूल को ख़ुद अपना पता देता हूँ
कितने चेहरों में झलक तेरी नजर आती है
कितनी आँखों को मैं बेबात जगा देता हूँ

एक दो दिन मे वो इक़रार कहाँ आएगा
हर सुबह एक ही अख़बार कहाँ आएगा
आज बाँधा है जो इनमें, तो बहल
रोज़ इन बाँहों का त्यौहार कहाँ आएगा

Monday, July 2, 2018

मैने सोचा था तुम्हे फोन करूंगा एक दिन / Unknown

मैने सोचा था तुम्हे फोन करूंगा एक दिन

पूछना था कि तबीय्यत तुम्हारी कैसी है

ये नई वाली मोहब्बत तुम्हारी कैसी है
रात को जागते रहते हो कि सो जाते हो
इक नई ख़्वाब के आग़ोश में खो जाते हो

अब भी कॉन्टेक्ट में है नाम कि मिटा डाला

तोहफे रख्खे हैं अभी या उन्हें जला डाला

दिन में सौ बार मुझे फोन किया करती थी

फोन उठाने में जो देरी हो लड़ा करती थी

चैट ईमो पे दबे पांव चली आती थी

बात ही बात में ये रात गुज़र जाती थी

फोन में बारहा पैसा भी भरा देता था

आनलाईन तुम्हे शापिंग भी करा देता था

माह में गिफ्ट कोई तुम को भा ही जाता था

बिल मेरे नाम का हर वक़्त चला आता था

अब तो टिक भी यहाँ रंगीन तक नही होता

कोई मैसेज भी मेरा सीन तक नही होता

मैने सोचा था कि तुम तो बड़ी पागल निकली

आज एहसास हुआ तुम बड़ी डिजिटल निकली

एटीएम जैसे यहाँ हैक हो गया शायद

ईश्क़ मेरा भी यहाँ बैक हो गया शायद

नोटबंदी का यहाँ जैसे फायदा ही नहीं

आज के दौर की चाहत में ज़ायक़ा ही नहीं

एक दूजे के लिए छल नहीं करने वाला

प्यार अपना कभी डिजिटल नहीं करने वाला

तुम से मिलने का इरादा ही यहाँ छोड़ दिया
फोन को अपने उठाया उठा के तोड़ दिया

मैने सोचा था तुम्हे फोन करूंगा एक दिन

Kal Hamesha ki tarah us nay kaha yeh phone par || Last Call || Wasi Shah

Last Call By Wasi Shah Kal Hamesha ki tarah us nay kaha yeh phone par ... Main bohot masroof hoon, mujh ko bohot sey kaam hain ... I...