Monday, May 4, 2020

Kal Hamesha ki tarah us nay kaha yeh phone par || Last Call || Wasi Shah


Last Call By Wasi Shah

Kal Hamesha ki tarah us nay kaha yeh phone par ...
Main bohot masroof hoon, mujh ko bohot sey kaam hain ...
Is liye tum aao milney, mai to aa sakti nahi ...
Har riwaayat torr kar is baar main ne keh diya ...

Tum jo ho masroof to main bhi bohot masroof hoon ...
Tum agar ghamgeen ho, main bhi bohot ranjoor hoon ...
Tum thakan sey choor to main bhi thakan sey choor hoon ...
Jaan-e-man hai waqt mera bhi bohot hi qeemti ...
Kuch puraanay doston nay milnay aana hai abhi ...
Main bhi ab farigh nahi, mujh ko bhi laakhon kaam hain ...
Warna kehney ko to sab lamhey tumhare naam hain ...
Meri Aankhein bhi bohat bojhal hain, sona hai mujhe ...
Ratjago'n k baad ab neendon main khona hai mujhe ...
Main lahoo apni anaaon ka baha sakta nahi ...
Tum nahi aateen to milney main bhi aa sakta nahi ...

Us ko yeh keh ke WASI main nay receiver rakh diya ...
Aur phir apni anaa k paaoon pay sar rakh diya ...

भले दिनों की बात थी भली सी एक शक्ल थी || अहमद फ़राज़

Ahmad Faraz







भले दिनों की बात थी
भली सी एक शक्ल थी
ना ये कि हुस्ने ताम हो
ना देखने में आम सी
ना ये कि वो चले तो कहकशां सी रहगुजर लगे
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे
कोई भी रुत हो उसकी छब
फ़जा का रंग रूप थी
वो गर्मियों की छांव थी
वो सर्दियों की धूप थी
ना मुद्दतों जुदा रहे
ना साथ सुबहो शाम हो
ना रिश्ता-ए-वफ़ा पे ज़िद
ना ये कि इज्ने आम हो
ना ऐसी खुश लिबासियां
कि सादगी हया करे
ना इतनी बेतकल्लुफ़ी
की आईना हया करे
ना इखतिलात में वो रम
कि बदमजा हो ख्वाहिशें
ना इस कदर सुपुर्दगी
कि ज़िच करे नवाजिशें
ना आशिकी ज़ुनून की
कि ज़िन्दगी अजाब हो
ना इस कदर कठोरपन
कि दोस्ती खराब हो
कभी तो बात भी खफ़ी
कभी सुकूत भी सुखन
कभी तो किश्ते ज़ाफ़रां
कभी उदासियों का बन
सुना है एक उम्र है
मुआमलाते दिल की भी
विसाले-जाँफ़िजा तो क्या
फ़िराके-जाँ-गुसल की भी
सो एक रोज क्या हुआ
वफ़ा पे बहस छिड़ गई
मैं इश्क को अमर कहूं
वो मेरी ज़िद से चिढ़ गई
मैं इश्क का असीर था
वो इश्क को कफ़स कहे
कि उम्र भर के साथ को
वो बदतर अज़ हवस कहे
शजर हजर नहीं कि हम
हमेशा पा ब गिल रहें
ना ढोर हैं कि रस्सियां
गले में मुस्तकिल रहें
मोहब्बतें की वुसअतें
हमारे दस्तो पा में हैं
बस एक दर से निस्बतें
सगाने-बावफ़ा में हैं
मैं कोई पेन्टिंग नहीं
कि एक फ़्रेम में रहूं
वही जो मन का मीत हो
उसी के प्रेम में रहूं
तुम्हारी सोच जो भी हो
मैं उस मिजाज की नहीं
मुझे वफ़ा से बैर है
ये बात आज की नहीं
न उसको मुझपे मान था
न मुझको उसपे ज़ोम ही
जो अहद ही कोई ना हो
तो क्या गमे शिकस्तगी
सो अपना अपना रास्ता
हंसी खुशी बदल दिया
वो अपनी राह चल पड़ी
मैं अपनी राह चल दिया
भली सी एक शक्ल थी
भली सी उसकी दोस्ती
अब उसकी याद रात दिन
नहीं, मगर कभी कभी
हुस्न ताम - पूरा शबाब,  
कहकशां - आकाशगंगा, 
इज्ने आम - सभी को इजाजत
हया - शर्म, 
इखतिलात - दोस्ती,
 रम - वहशत, 
खफ़ी - छिपी हुई, चुप्पी
किश्ते ज़ाफ़राँ - केसर की क्यारी, 

विसाले जाँफ़िजा - प्राणवर्धक मिलन,
फ़िराके जाँ गुसिल - प्राण घातक दूरी,
 असीर - कैदी, 
कफ़स - पिन्जरा, कैद खाना,
अज हवस - हवस से भी खराब,
 शजर - पेड, 
हजर - पत्थर, 
पा-ब-गिल - विवश
मुस्तकिल - लगातार, 
वुसअतें - लम्बाई, चौड़ाई, 
दस्तो-पा - हाथ, पैर, 
निस्बतें - संबन्ध
सगाने-बावफ़ा - वफ़ादार कुत्ते, 
ज़ोम - गुमान,
 अहद - वचन बद्धता, 
गमे शिकस्तगी - टूटने का गम

Monday, April 8, 2019

तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया /तहज़ीब हाफी


तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दी की गला बैठ गया

यूँ नहीं है की फ़कत मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाव में गया बैठ गया

अपना लडना भी मुहब्बत है तुम्हे इल्म नहीं
चीखती तुम रही और मेरा गला बैठ गया

इतना मीठा था वो गुस्से भरा लहजा मत पूछ
उसने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया

उसकी मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फलां मेरी जगह बैठ गया

बज़्मे जाना में नशिश्ते नहीं होती मख्सूस
जो भी एक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया !

:-तहज़ीब हाफी

Friday, September 21, 2018

कहीं-कहीं से हर चेहरा तुम जैसा लगता है / Nida Fazli

कहीं-कहीं से हर चेहरा तुम जैसा लगता है
तुम को भूल न पायेंगे हम, ऐसा लगता है

ऐसा भी इक रंग है जो करता है बातें भी
जो भी इसको पहन ले वो अपना-सा लगता है

तुम क्या बिछड़े भूल गये रिश्तों की शराफ़त हम
जो भी मिलता है कुछ दिन ही अच्छा लगता है

अब भी यूँ मिलते हैं हमसे फूल चमेली के
जैसे इनसे अपना कोई रिश्ता लगता है

और तो सब कुछ ठीक है लेकिन कभी-कभी यूँ ही
चलता-फिरता शह्‌र अचानक तन्हा लगता है

Monday, September 3, 2018

हो काल गति से परे चिरंतन/ Dr. Kumar Vishwas


Dr. Kumar Vishwas


 काल गति से परे चिरंतन,
अभी यहाँ थे अभी यही हो।
कभी धरा पर कभी गगन में,
कभी कहाँ थे कभी कहीं हो।
तुम्हारी राधा को भान है तुम,
सकल चराचर में हो समाये।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
कि जिसमें होकर भी तुम नहीं हो।

न द्वारिका में मिले विराजे,
व्रज की गलियों में भी नहीं हो।
न ज्ञानियों के हो ध्यान में तुम,
अहम जड़े ज्ञान में भी नहीं हो।
तुम्हे ये जग ढूँढता है मोहन,
मगर इसे ये खबर नहीं है।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
अगर कहीं हो तो तुम यहीं हो।

Dr. Kumar Vishwas

Kal Hamesha ki tarah us nay kaha yeh phone par || Last Call || Wasi Shah

Last Call By Wasi Shah Kal Hamesha ki tarah us nay kaha yeh phone par ... Main bohot masroof hoon, mujh ko bohot sey kaam hain ... I...