Monday, April 8, 2019

तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया /तहज़ीब हाफी


तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दी की गला बैठ गया

यूँ नहीं है की फ़कत मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाव में गया बैठ गया

अपना लडना भी मुहब्बत है तुम्हे इल्म नहीं
चीखती तुम रही और मेरा गला बैठ गया

इतना मीठा था वो गुस्से भरा लहजा मत पूछ
उसने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया

उसकी मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फलां मेरी जगह बैठ गया

बज़्मे जाना में नशिश्ते नहीं होती मख्सूस
जो भी एक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया !

:-तहज़ीब हाफी

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