Friday, September 21, 2018

कहीं-कहीं से हर चेहरा तुम जैसा लगता है / Nida Fazli

कहीं-कहीं से हर चेहरा तुम जैसा लगता है
तुम को भूल न पायेंगे हम, ऐसा लगता है

ऐसा भी इक रंग है जो करता है बातें भी
जो भी इसको पहन ले वो अपना-सा लगता है

तुम क्या बिछड़े भूल गये रिश्तों की शराफ़त हम
जो भी मिलता है कुछ दिन ही अच्छा लगता है

अब भी यूँ मिलते हैं हमसे फूल चमेली के
जैसे इनसे अपना कोई रिश्ता लगता है

और तो सब कुछ ठीक है लेकिन कभी-कभी यूँ ही
चलता-फिरता शह्‌र अचानक तन्हा लगता है

Monday, September 3, 2018

हो काल गति से परे चिरंतन/ Dr. Kumar Vishwas


Dr. Kumar Vishwas


 काल गति से परे चिरंतन,
अभी यहाँ थे अभी यही हो।
कभी धरा पर कभी गगन में,
कभी कहाँ थे कभी कहीं हो।
तुम्हारी राधा को भान है तुम,
सकल चराचर में हो समाये।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
कि जिसमें होकर भी तुम नहीं हो।

न द्वारिका में मिले विराजे,
व्रज की गलियों में भी नहीं हो।
न ज्ञानियों के हो ध्यान में तुम,
अहम जड़े ज्ञान में भी नहीं हो।
तुम्हे ये जग ढूँढता है मोहन,
मगर इसे ये खबर नहीं है।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
अगर कहीं हो तो तुम यहीं हो।

Dr. Kumar Vishwas

Kal Hamesha ki tarah us nay kaha yeh phone par || Last Call || Wasi Shah

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